कुरआन की महिलाओं से संबंधित सूरा : आयतें --
2:223 - स्त्रियां खेत हैं जैसे चाहो अपने खेत में जाओ और आगे भेजो । (आगे भेजो ही हलाला है)
4:3 , 23:5-6 , 33:50 और 70:30 - गुलाम, बंदियों और कब्जाई स्त्रियों से सेक्स जायज ।
65:4 - जो पत्नी अभी रजस्वला नहीं हुई है उससे तलाक की इद्दत तीन मास है ।
33:37 - ससुर अपने मुंहबोले या गोद लिये बेटे की बीबी से निकाह कर सकता है ।
33:33 - महिलाएं बिना सज-धज के घर में ही रहें ।
2:228 - मर्दों का औरतों के मुकाबले दर्जा बडा हुआ है ।
2:230 - एक तलाकशुदा पत्नी को पहले पति से फिर निकाह करने से पहले किसी दूसरे मर्द से निकाह, शारिरिक संबंध और तलाक की प्रक्रिया (हलाला) पूरी करनी होगी ।
2:282 - दो औरतों की गवाही एक मर्द की गवाही के बराबर होगी ताकि यदि एक भूल जाये तो दूसरी उसे याद दिला दे ।
4:11 और 12 - लडके का जायदाद में हिस्सा लडकी से दुगुना होगा , मां और बीबी का हिस्सा अलग-अलग परिस्थितियों में 1/3, 1/4, 1/6 होगा ।
4: 34 - पति ने पत्नी पर अपना माल खर्च किया है इसलिये जरूरत पडने पर पत्नी को मारो-पीटो ।
8:69  - लूट का सब माल ( मतलब महिलाओं सहित ) हलाल है ।
नजरें और नीयत खराब मर्दों की पर बुर्का पहनें महिलाएं ।
शरियत में प्रावधान है कि अगर कोई महिला किसी मर्द पर बलात्कार का आरोप लगाती है और मर्द आरोप कबूल न करे तो महिला को पूरे चार ऐसे गवाह पेश करने होंगें जिन्होंने इनके गुप्तांगों का मेल साफ-साफ देखा है अन्यथा महिला को 80 कोडों की सजा होगी । (कुरान 24:4)
निकाह का अर्थ है केवल एक कानूनी अनुबंध न कोई प्रेम न कोई रिश्ता ।
गलती किसी की भी हो पर हलाला पत्नी को ही कराना पडता है और कथित जन्नत में मर्दों के लिये तो हूरें हैं पर महिलाओं के लिये कुछ नहीं है ।
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