वाकई सभी मुसलमान एक जैसे नहीं
होते !
दुनिया में 2 तरह के मुसलमान पाए जाते
(1) - कट्टरपंथी मुसलमान
(2) - शांतिप्रिय मुसलमान ।
कट्टरपंथी मुसलमान चाहते हैं कि वो
अपने हाथों से काफिरों (गैरमुस्लिमों)
का गला काटें और
शांतिप्रिय मुसलमान चाहते हैं की काफिरों
का गला काटने का काम कटटरपंथी
मुसलमान करें ।
वाकई सभी मुसलमान एक जैसे नहीं
होते!

1.घाटी से भगाए गए कश्मीरी पंडित नही भटके!

2.तिब्बत से भगाए गए बौद्ध नही भटके!

3.हिटलर के नरसंहार को झेलने वाले यहूदी नही भटके!

4.कंबोडिया में 30 लाख की मौत के बाद भी लोग नही! भटके

5.कैराना के पीड़ित हिन्दू कभी नही भटके!

सिर्फ एक ही धर्म के लोग क्यों भटकते है?
इसीलिए तो मै केहता हूं कोई अटका और भटका हुआ नहीं होता ;ये सब आसमानी किताब (कु-रान) को पढ़ कर सटका हुआ होता है ;पागल कुत्ते (पत्थरबाजों) को देखते ही गोली मारो ।

जरा सोचिएगा!!.

मुस्लिम हिंदुओं के साथ ही रह सकते थे तो गांधी ने
अलग पाकिस्तान क्यों बनवाया?
और नहीं रह सकते थे,तो इनको भारत में क्यों रख
लिया ?

जो अपने पूर्वजों के सगे नहीं हुए वो किसी
के क्या भाई होंगे ?
जिनकी अभी अपनी सातवी पीढ़ी तक
नहीं आई वो क्या इस्लाम-इस्लाम
चिल्लाते हैं।
कुरआन ही इन्हें सिखाती है की ..
जो अल्लाह के आगे हाथ न पसारे उसे
मारो ,
जो काफिर (गैर-मुस्लिम) हो उसे मारो ,
जो रसूल को न माने उसे मारो ,
जो इस्लाम छोड़ दे उसे मारो ,
जो नमाज न पढ़े उसे मारो,
मारो , मारो , मारो ।।

 पहले में कुरान को श्रीमद्भगदगीता की भांति मानता था किन्तु जब से इसको पढ़ना शुरू किया है तो पता चला की ये तो बलात्कारियो की मारांड है, मानवता के हत्यारों और कसाईयो की माँ है कुरान गन्दगी फैलाती है थूकता हु कुरआन पर, थू

 एक समय मैं एक सेक्यूलर हिन्दू था और यह मानता था की सभी धर्म मानवता/इंसानियत के लिये ही बनाए गये हैं और आतंकवाद महज कुछ भटके हुए लोगों का समूह है ।
मैं सोचता था की एक भव्य राम मंदिर बनाने से बेहतर होगा की गरीबों के लिये अस्पताल और स्कूल बनाएं जाएं ।
ईसाईयों और मुस्लिमों द्वारा किये जा रहे धर्म परिवर्तन के साम/दाम/दंड/भेद के अथक प्रयासों को भी मैं संविधान में दी गई छूट समझकर ध्यान नहीं देता था ।
हिंदू-मुस्लिम के दंगों का आधार मैं केवल अंग्रेजों द्वारा फैलाई गई नीति 'फूट डालो राज करो' को ही मानता था ।
अपने मुस्लिम दोस्तों के 'भारत माता की जय' और 'वन्देमातरम्' नहीं बोलने को मैं उनकी नासमझी ही समझता था ।
बस मुझे एक बात समझ नहीं आती थी की आतंकवादी लोग अल्लाह, नबी, इस्लाम और कुरआन का हवाला क्यों देते हैं ?
इसी कशमकश के बीच मैंने कुरआन पढ़ना शुरू की और मेरे सवालों के जवाब एकदम सामने आ गये की असली बिमारी की जड़ यही किताब है जो मुसलमानों को उकसाती है गैर-मुस्लिमों का कत्ल करने के ऐवज में जन्नत का लालच देती है ।

 कॉलेज का पढा व्यक्ति सिर्फ प्लेन उड़ा सकता है
जबकि मदरसे का (क़ुरान)पढा व्यक्ति पूरा का पूरा एरपोर्ट उड़ा सकता है
  *पापीस्तान शिक्षा विभाग*. .

कोई एक उदाहरण बता सकता है
कि "भागवत गीता' पढ़ा हुआ
व्यक्ति "आतंकवादी" बना हो!
नहीं ना! क्योंकि भागवत गीता
हमे मनुष्य बनाती है "आतंकवादी
नहीं" और मैं कई नाम बता सकता
हूँ जो "कु-रान" पढ़कर
"आतंकवादी' बने हैं ये ही फर्क है वेदों में और 'तुम्हारे
"कु-रान" में ।

मुसलमानो की कुरान के प्रति मजबूरी है।
कि उस पर ईमान लाना, चाहे वो कितना
भी घटिया, गलत सलत और ऊटपटांग
क्यों न हो, चाहे विश्वास करने लायक
हो या न हो, बस उस पर ईमान लाओ।
तभी तो कोई मुस्लिम कुरान हदीस और
मोहम्मद की गलतियों और कुकर्मों को
स्वीकार नहीं करता।
मोहम्मद, मुसलमानो को अच्छा चूना
देकर गया है।

 जिस किताब को लिखने वाला कहता हो कि "दूसरे धर्म बेकार हैं उनको मानने वालों का गला काट दो, दूसरा कोई भगवान पूज्य नहीं है" वो मेरी नजर में एक शैतान है ।.

एक बात तो है।
जो लोग कुरान को अल्ला की किताब बताते थे और कुरान को सबसे पुराने किताब की मान्यता देते थे वो लोग अब कुरान को छुपाने की कोशिश करते है कि अगर किसी ज्ञानी इन्सान को दिखाया तो वह समझ सकते है की यह किताब किसी अनपढ़ जाहिल
का लिखा हुआ है।

गुरु गोविंद सिंह -- अगर कोई अपना
हाथ तेल में देदे, फिर तिलों में देदे, और
फिर जितने तिल उसके हाथ पर चिपक
जाएं, अगर उतनी बार कोई मुसलमान
अपनी कुरान की भी कसम खाए, तब भी
उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए।

मैं गीता पर हाथ और कुरान पर लात
रख कर कसम खाता हूं मुसलमानों और
इस्लाम का समर्थन कभी नहीं करूंगा

कु-रान को जड़ से खत्म करना होगा तभी यह संसार सुधरेगा वरना मानव जाति का विनाश यू ही होता रहेगा


ॐ
أحدث أقدم