Tipu Sultan

जर्मन यहूदी रोथ्स्चाइल्ड को आज भी बहुत कम लोग जानते हैं ।
80% इजराइल रोथ्स्चाइल्ड का है और US फेडरल रिज़र्व वही चलाता है। 2011 में उसकी संपत्ति 300 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक आँकी गई थी, यानी 300,000 अरब डॉलर । पर मज़ा देखिये, कि उसका नाम फोर्ब्स 500 की लिस्ट में नहीं है।

फोर्ब्स अमेरिका में रोथ्स्चाइल्ड का अफ़ीम एजेंट था। बिल गेट्स,  कार्लोस स्लिम्स , वारेन बफ़ेट ये सब 60 अरब अमेरिकी डॉलर से भी कम संपत्ति वाले लोग विश्व के सबसे धनी लोगों में टॉप थ्री पोजीशन पर आते हैं । ( किसी मीडिया या इतिहासकार की हिम्मत नहीं है कि रोथ्स्चाइल्ड का नाम जुबान पर ले आए )

रोथ्स्चाइल्ड ने इतना ज्यादा धन कहाँ से इकट्ठा किया ? जानना चाहेंगे ?

तो सुनिये, वह टीपू सुल्तान द्वारा लूटा हुआ हिन्दुओं का सोना उठाकर ले गया था --

1799 : रोथ्स्चाइल्ड के सबसे तेज चलनेवाले क्लिपर जहाज बंदरगाह पर खड़े थे और तीन महीने से टीपू सुल्तान की हत्या होने का इंतज़ार कर रहे थे ताकि उसके द्वारा इकट्ठा किया हुआ टनों सोना ( 7000 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का सोना ) लाद कर ले जाएं ।

और टीपू सुल्तान को इतना सोना कहाँ से मिला था?

उसका पंजाबी मुस्लिम बाप हैदर अली तो मैसूर के हिन्दू राजा वोडेयार की सेना का एक साधारण सैनिक नायक था ।

टीपू का सोना आया था मुख्यतः कालीकट के मन्दिरों के तहखानों से -- जो एक स्थायी राज्य में 6 सहस्राब्दियों के मसाला व्यापार का परिणाम था, जहाँ कभी आक्रमण नहीं हुए थे, जबतक कि 1498 में पुर्तगाली अपनी उत्कृष्ट तोपें लेकर नहीं आए !

इस शुद्ध सोने का अधिकांश टिम्बकटू की खदानों से आया था। राजा सोलोमन मसालों, सागौन की लकड़ी और चन्दन की लकड़ी के बदले सोना भेजता था ।

रोथ्स्चाइल्ड ने बाद में भारत से चीन अफ़ीम की तस्करी से अपने धन को कई गुना बढ़ाया ... पर ये कहानी बहुत लंबी हो जाएगी ।

1799 में उन्होंने मुख्य सेनापति मीर सादिक़ को घूस देकर टीपू सुल्तान को मरवा दिया और फिर उसकी लाश को पोशाक पहनाकर श्रीरंगपट्टनम के किले के बाहर युद्धक्षेत्र में ऐसे रख दिया मानो उसकी युद्ध में मृत्यु हुई हो ।

फिर, जैसी कि उनकी चाल थी, उन्होंने हवा में हजारों रॉकेट और बंदूकें दागनी शुरू कीं ताकि लोगों को लगे कि किले पर भीषण चढ़ाई हो रही है। फिरंगियों ने सारी रात मनमाने बलात्कार और लूटपाट किये । फिरंगी इतिहासकारों ने ये सब कुछ नहीं लिखा है। हवा में इतनी गर्मी और धुवाँ फैला कि अगले दिन भयानक रूप से बादल फट गया ।

किले की किसी दीवार पर चढ़ाई नहीं हुई थी, जैसा कि विदेशी इतिहासकार लिखते हैं। 4 मई 1799 को मीर सादिक़ ने किले का दरवाजा खोला था ...

आप पूछेंगे कि टीपू सुल्तान के वफादार सैनिक उस वक़्त क्या कर रहे थे ? तो रोथ्स्चाइल्ड ने इसकी व्यवस्था कर रखी थी। उसने टीपू सुल्तान के प्रधानमंत्री कृष्णाचार्य पूर्णैया ( मीर मिरान पूर्णैया ) को मिला रखा था (दूसरे चित्र में) जिसने टीपू के वफ़ादार सैनिकों को पगार लेने के लिये भेजकर दूर लाइन में खड़ा कर दिया था , और महल की पहरेदारी पर कोई नहीं था ।

उस वक़्त टीपू नाश्ते पर बैठा था -- अचानक किसी ने उसके बाएं गाल पर नज़दीक से बंदूक चलाई और वह ढेर हो गया। उसकी छाती पर तीन बार छुरा भी घोंपा गया और फिर शाम में उसकी लाश को बाहर मैदान में अन्य लाशों के बीच फेंक दिया गया।

मीर सादिक़ और उसके सहायक मीर मोइनुद्दीन को लॉर्ड वैलेसेली (रोथ्स्चाइल्ड के आदमी) ने घूस खिलाई थी और फिर ब्रिटिश ने इन दोनों मियों की भी हत्या कर दी .. (मोसाद की शैली में) ..

ब्रिटिश ने अपदस्थ राजा वोडेयार को, जो टीपू की जेल में सड़ रहा था, फिर से मैसूर का राजा बना दिया ।

जब टीपू सुल्तान उ. केरल के सभी मंदिरों से सोना साफ कर रहा था -- मंदिरों के तहखाने तोड़ता था , मंदिरों की नींव खोदता था , केरल की महिलाओं से गहनों की छीना-झपटी करता था -- यानी सारे गंदे और अशोभनीय काम -- और स्थानीय मप्पिला उसे गुप्त जानकारियां देते रहते थे और मुस्लिम बिरादरी निभाते रहते थे -- तो ब्रिटिश चुपचाप सबकुछ देख रहे थे -- बस, अवसर आने पर वे एक ही बार में सारा सोना उड़ा ले गए -- वैसे ही, जैसे मधुमक्खी मेहनत करके शहद इकट्ठा करे और भालू एक झटके में सारा शहद चट कर जाए ... सारा सोना एमशेल मेयर रोथ्स्चाइल्ड के तहखानों में चला गया ...

आज इसी टीपू सुल्तान को भारत के नेता ( कांग्रेस और भाजपा दोनों ) एक नायक और छत्रपति शिवाजी की तरह एक स्वातंत्र्य-योद्धा सिद्ध करने पर तुले हुए हैं।

भुवन सोम



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