कुरआन में जितनी अल्लाह की तारीफ की गई है उतनी ही दूसरे के भगवानों की बुराई की गई है । (रेफरेंस - कुरआन - सूरा:आयत - 2:163 , 3:2 , 3:6 , 35:3 , 11:14 , 21:25 और 21:98)

कुरआन में जितनी इस्लाम की तारीफ की गई है उससे दोगुना दूसरे धर्मों की बुराई की गई है । (रेफरेंस - कुरआन - सूरा:आयत 3:19 और 3:85)

कुरआन में जितनी आपसी शांति की बात की गई है उससे दस गुना ज्यादा दूसरों से हिंसा की बात की गई है । (रेफरेंस - कुरआन -सूरा:आयत - 2:98 , 2:244 , 3:169 , 3:195 , 4:101 , 8:12 , 8:39 , 9:5 , 9:14 , 9:123 , 16:106 , 32:22 और 66:9)

कुरआन में जितना अल्लाह से प्रेम/सजदा (2:43) करने की आयत नहीं लिखी हैं उससे सैंकडों गुना ज्यादा आयत अल्लाह से डरने की लिखी हैं (रेफरेंस - कुरआन - सूरा:आयत -  2:2 , 2:24 , 2:40 , 2:41 , 2:48 , 2:66 , 2:103 , 2:82 , 2:83 , 2:183 , 2:189 , 2:194 , 2:196 , 2:197 , 2:203 , 2:231 , 2:233 , 3:30 , 3:50 , 3:76 , 3:198 , 4:9 , 5:2 , 5:8 , 5:11 , 8:2 , 9:4 , 14:14 , 16:2 , 29:16 , 59:7 , 59:18)
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